गुटेरेश, संयुक्त राष्ट्र संघ, बंद कमरें की बैठक, कश्मीर और भारत

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् (UN Security Council) ने क्या कहा, क्या कुछ हुआ? यहाँ हम संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations) द्वारा सुरक्षा परिषद् के बंद कमरे में हुई बैठक, चीन, पाक और भारत के राजदूतों के विचार, संयुक्त राष्ट्र महासचिव की पुलवामा हमले के बाद और कश्मीर में अनुच्छेद 370 (Article 370 ) और धारा 35 ए को हटाने संबंधी आधिकारिक टिप्पणियाँ और प्रेस वक्तव्य प्रस्तुत कर रहे हैं।

इसमें ‘जनसमाचार’ की टिप्पणी शामिल नहीं है। इससे विश्व समुदाय और संयुक्त राष्ट्र के मानस को सहज समझा जासकता है।

कश्मीर मुद्दे पर सुरक्षा परिषद की ‘बंद’ बैठक, चीन द्वारा संयम का आग्रह

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने कश्मीर में तनावपूर्ण स्थिति पर शुक्रवार को गोपनीय विचार-विमर्श किया. 1965 के बाद ये पहला मौक़ा था जब सुरक्षा परिषद ने कश्मीर मुद्दे पर विचार विमर्श करने के लिए ‘विशिष्ठ बैठक’ आयोजित की। सुरक्षा परिषद पर दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा संबंधी मामलों का समाधान तलाश करने की ज़िम्मेदारी है।

सुरक्षा परिषद की बैठक 16 अगस्त 2019  को  अलबत्ता न्यूयॉर्क (New York) स्थित मुख्यालय में बंद कमरे (closed doors ) में हुई लेकिन उसके बाद तीन देशों के राजदूतों ने पत्रकारों से भी बातचीत की।

सबसे पहले चीन के राजदूत (Chinese Ambassador) झांग जून (Zhang Jun) , फिर पाकिस्तानी राजदूत ((Pakistani Ambassador) मलीहा लोधी (Maleeha Lodhi) और अंत में भारतीय राजदूत (Indian Ambassador) सैयद अकबरुद्दीन (Syed Akbaruddin) ने संवाददाताओं को संबोधित किया।

Photo (courtesy : UN HQ building Photo: Rick Bajornas

सैयद अकबरुद्दीन ने पत्रकारों के सवालों के जवाब भी दिए जबकि चीन और पाकिस्तान के राजदूत अपना वक्तव्य देकर चले गए।

चीन के राजदूत झांग जून ने भारत और पाकिस्तान (India and Pakistan) से “ऐसा कोई भी क़दम उठाने से बचने का आग्रह किया जिससे क्षेत्र में पहले से ही तनावपूर्ण और बेहद ख़तरनाक हालात और बिगड़ जाएँ”।

मुस्लिम बहुल क्षेत्र कश्मीर के भारत प्रशासित हिस्से को जम्मू कश्मीर कहा जाता है जिसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत विशेष दर्जा प्राप्त था।

भारत सरकार ने 5 अगस्त 2019 को ये विशेष दर्जा समाप्त कर दिया और कश्मीर को केंद्र सरकार के कड़े नियंत्रण में रख दिया।

पाकिस्तान की दलील है कि भारत सरकार के इस क़दम से अंतरराष्ट्रीय क़ानून का उल्लंघन होता है।

कश्मीर क्षेत्र में लंबे समय से संयुक्त राष्ट्र की संस्थागत मौजूदगी रही है । कश्मीर (Kashmir) पर भारत और पाकिस्तान दोनों ही देश अपना-अपना दावा करते हैं और ये क्षेत्र एक नियंत्रण रेखा के ज़रिए बँटा हुआ है।

सीमा पर किसी भी तरह के युद्धविराम उल्लंघन की स्थिति की निगरानी ‘भारत और पाकिस्तान के लिए संयुक्त राष्ट्र का सैन्य पर्यवेक्षक गुट’ (UNMOGIP) करता है और सुरक्षा परिषद को रिपोर्ट करता है।

 

चीन के राजदूत

चीन के राजदूत झांग जून ने कहा कि सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) में मौजूदा हालात पर “गंभीर चिंताई जताई”…“ कश्मीर मुद्दे का सटीक समाधान शांतिपूर्ण तरीक़ों के ज़रिए निकाला जाना चाहिए, जैसाकि यूएन चार्टर ( UN Charter) , सुरक्षा परिषद के संबंधित प्रस्तावों और दोनों देशों के बीच हुए समझौतों में व्यवस्था है।”

कश्मीर मुद्दे पर सुरक्षा परिषद की बैठक के लिए पाकिस्तान ने 13 अगस्त को अनुरोध किया था और चीन ने औपचारिक रूप से ये बैठक बुलाई थी जोकि सुरक्षा परिषद का एक स्थाई सदस्य है।

पाकिस्तान की राजदूत

पाकिस्तान की राजदूत मलीहा लोधी ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि सुरक्षा परिषद की बैठक ने “क़ब्ज़ा किए हुए कश्मीर के लोगों की आवाज़ विश्व के सर्वोच्च कूटनीतिक मंच पर सुनने का मौक़ा दिया।”

मलीहा लोधी ने तर्क दिया कि “सुरक्षा परिषद की ये बैठक हुई, ये तथ्य ही इस बात का प्रमाण है कि ये मुद्दा एक अंतरराष्ट्रीय विवाद है।”

मलीहा लोधी ने कहा, “जहाँ तक हमारे देश के रुख़ का सवाल है तो हम जम्मू कश्मीर पर शांतिपूर्ण समाधान के लिए तैयार हैं. मेरा ख़याल है कि सुरक्षा परिषद में हुई चर्चा से भारत का ये दावा बेमानी हो जाता है कि जम्मू कश्मीर भारत का एक आंतरिक मामला है।आज पूरी दुनिया क़ब्ज़ा किए हुए राज्य और वहाँ की स्थिति पर चर्चा कर रही है।”

भारत के राजदूत

अंत में भारत के राजदूत सैयद अकबरुद्दीन ने अपना रुख़ पत्रकारों के सामने रखते हुए कहा, “हमारा राष्ट्रीय रुख़ ये रहा है और आज भी है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 से संबंधित मामले पूरी तरह से भारत का आंतरिक मामला हैं… भारत सरकार और हमारी विधायी संस्थाओं द्वारा हाल ही में लिए गए फ़ैसले इस नीयत से लिए गए हैं कि जम्मू कश्मीर और लद्दाख में अच्छे प्रशासन और वहाँ के लोगों के सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया जाए।”

सैयद अकबरुद्दीन ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि जम्मू कश्मीर के मुख्य सचिव ने कुछ ऐसे उपायों की घोषणा की है जिनके ज़रिए क्षेत्र में हालात सामान्य होंगे।

उन्होंने कहा, “भारत क्षेत्र में स्थिति सामान्य और शांतिपूर्ण रखने के लिए प्रतिबद्ध है. हम इस मुद्दे पर हुए उन सभी समझौतों के लिए भी प्रतिबद्ध हैं जिन पर हमने दस्तख़त किए हैं।”

सैयद अकबरुद्दीन ने किसी का नाम लिए बिना ये भी कहा कि “ख़ास चिंता की बात ये है कि एक देश भारत के ख़िलाफ़ और भारत में हिंसा को बढ़ावा देने के लिए जिहाद का शब्द इस्तेमाल कर रहा है, और ऐसा उनके नेता भी कर रहे हैं।”

उन्होंने ये भी कहा कि “भारत इस सिद्धांत के लिए प्रतिबद्ध है कि भारत और पाकिस्तान व भारत और अन्य देशों के बीच तमाम मुद्दों का हल द्विपक्षीय, शांतिपूर्ण और ऐसे तरीक़ों से निकाला जाए जिनसे देशों के बीच सामान्य संबंधों को बढ़ावा मिले।”

महासचिव गुटेरेश के प्रवक्ता

संयुक्त राष्ट्र महासचिव (United Nations Secretary-General) एंटेनियो गुटेरेश (António Guterres) के प्रवक्ता स्टीफ़ान दुजारिक ने गुरूवार, 8 अगस्त 2019 को एक वक्तव्य पढ़कर सुनाया जिसमें यूएन प्रमुख ने स्पष्ट किया है कि इस क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र का रुख़ ‘यूनाइटेड नेशंस चार्टर’ और इस मुद्दे से संबंधित सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों पर आधारित है।

प्रवक्ता ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय संबंधों पर 1972 में हुए ‘शिमला समझौते’ का भी ध्यान दिलाया है।

इस समझौते में कहा गया है कि जम्मू और कश्मीर के दर्जे पर अंतिम निर्णय संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुरूप शांतिपूर्ण ढंग से लिया जाएगा।

महासचिव ने भारतीय हिस्से वाले कश्मीर पर लगाई गई पाबंदियों पर चिंता जताई है और कहा है कि इससे क्षेत्र में मानवाधिकारों की स्थिति और बिगड़ सकती है।

यूएन महासचिव ने सभी पक्षों से ऐसे क़दम ना उठाने का आग्रह किया है जिससे जम्मू और कश्मीर का दर्जा प्रभावित होता हो।

इससे पहले मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय (OHCHR) ने कहा था कि भारत प्रशासित कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संवैधानिक प्रावधान, अनुच्छेद 370, को ख़त्म किए जाने से वहां लोगों की बुनियादी लोकतांत्रिक आज़ादी पर जोखिम और ज़्यादा बढ़ जाएगा।

भारत सरकार द्वारा सोमवार, 5 अगस्त को अनुच्छेद 370 को समाप्त करने की घोषणा के बाद कश्मीर में हालात तनावपूर्ण हो गए और पाकिस्तान के साथ सीमा पर भी हलचल बढ़ी हुई देखी गई है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत भारत प्रशासित कश्मीर को व्यापक स्वायत्तता दी गई थी जिससे उसका विशेष दर्जा परिभाषित होता था।

Guterres

UN Photo/Mark Garten
: United Nations Secretary-General António Guterres (file)

संयुक्त राष्ट्र महासचिव

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश (Guterres)  ने 8 अगस्त 2019 को जारी एक वक्तव्य में कहा था कि वो जम्मू कश्मीर की स्थिति पर चिंता के साथ नज़र रखे हुए हैं और उन्होंने दोनों पक्षों से “अधिकतम संयम” बरतने की अपील भी की थी।

महासचिव गुटेरेश  (Guterres)के बयान में कहा गया था, “इस क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र का रुख़ यूएन चार्टर… और सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों पर आधारित है।”

संयुक्त राष्ट्र महासचिव गुटेरेश  (Guterres) के प्रवक्ता स्टीफ़ान दुजारिक द्वारा प्रस्तुत उस वक्यत्व में कहा गया था, “महासचिव ने भारत और पाकिस्तान के बीच 1972 के द्वपक्षीय समझौते को भी याद किया जिसे शिमला समझौता कहा जाता है. इस समझौते में कहा गया है कि जम्मू कश्मीर का दर्जा यूएन चार्टर के अनुसार, शांतिपूर्ण तरीक़ों से निर्धारित किया जाएगा।”

20 फ़रवरी 2019 को यूएन महासचिव के प्रवक्ता स्टेफ़ान डुजेरिक ने बताया कि “महासचिव बड़ी चिंता के साथ दक्षिण एशिया में स्थिति पर नज़र रखे हुए हैं। 14 फ़रवरी को भारतीय सुरक्षा बलों के ख़िलाफ़ आतंकवादी हमले और उसके बाद हुई हिंसा की कड़ी निंदा को उन्होेंने दोहराया है।”

यूएन महासचिव गुटेरेश  (Guterres)  के मुताबिक़ यह ज़रूरी है कि अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के तहत जवाबदेही तय की जाए और आतंकी हमले के लिए ज़िम्मेदार लोगों को जल्द सज़ा दिलाई जाए।

पुलवामा हमले के बाद से क्षेत्र में पनप रहे तनाव के चलते महासचिव गुटेरेश (Guterres)ने तनाव को कम करने के लिए संयम बरतने की सलाह दी है. “महासचिव ने तात्कालिक अनुरोध कर भारत और पाकिस्तान की सरकारों से अधिकतम संयम बरते जाने और स्थिति कोऔर न बिगड़ने देने को सुनिश्चित करने की अपील की है।”

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार 14 फ़रवरी को जम्मू कश्मीर के पुलवामा ज़िले में आतंकी हमले के बाद से ही भारत और पाकिस्तान में तनाव लगातार बढ़ रहा है।

मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बाशलेट ने भी पुलवामा हमले की कठोर निंदा करते हुए कहा था कि उन्हें उम्मीद है कि परमाणु हथियार संपन्न दोनों पड़ोसी देश क्षेत्र में असुरक्षा बढ़ाने वाले रास्ते पर नहीं चलेंगे।

गुरुवार, 19 फ़रवरी 2019 को पुलवामा में हुए एक आत्मघाती बम हमले में केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ़) के 40 जवान मारे गए थे. यह हमला सीआरपीएफ़ के एक काफ़िले को निशाना बना कर किया गया था।

इसके बाद से ही दोनों पड़ोसी देशों में ज़बरदस्त तनाव बना हुआ है।

यूएन महासचिव गुटेरेश  (Guterres) के प्रवक्ता स्टेफ़ान डुजेरिक ने पत्रकार द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में कहा, “पुलवामा में सुरक्षा बलों पर हमले के बाद से दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव से हमें गहरी चिंता है।

महासचिव ने दोनों देशों से अधिकतम संयम बरतने और तनाव कम करने के लिए तत्काल कदम उठाने की अहमियत पर बल दिया है।”

डुजेरिक ने कहा कि अगर दोनों देश चाहें तो महासचिव बातचीत के लिए हमेशा उपलब्ध हैं।

इसी तनाव की पृष्ठभूमि में संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की स्थायी प्रतिनिधि मलीहा लोधी मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र महासचिव के साथ मुलाक़ात कर रही हैं।

डुजेरिक ने बताया कि यह बैठक पाकिस्तान के स्थायी मिशन के अनुरोध पर हो रही है।

मीडिया में पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी की ओर से महासचिव को एक पत्र भेजे जाने की भी रिपोर्टें आई हैं लेकिन डुजेरिक ने कहा कि महासचिव कार्यालय को अभी तक ऐसा कोई पत्र नहीं मिला है।

16 फ़रवरी को हुई एक अन्य घटना का उल्लेख करते हुए यूएन प्रवक्ता ने कहा कि पुलवामा हमले के ख़िलाफ़ जम्मू में प्रदर्शन कर रहे लोगों ने भारत और पाकिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक समूह (UNMOGIP) के एक वाहन को घेर लिया और उसे आगे जाने नहीं दिया गया। वाहन के आगे एक पाकिस्तानी झंडे को रख दिया गया।

यूएन टीम (UN team) ने झंडे को बचाकर वाहन को निकालने का प्रयास किया लेकिन विफल रही. इस “खेदजनक और न टाली जा सकने वाली घटना” के लिए यूएन मिशन ने भारत और पाकिस्तान दोनों को सूचित कर दिया है। मिशन ने घटना की जांच किए जाने की बात कही है और भारत से अतिरिक्त सुरक्षा देने का अनुरोध किया है।