असम में देश के तीसरे सबसे बड़े भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की शुरूआत

गुवाहाटी, 27 मई (जनसमा)। प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने शुक्रवार को असम के गौमुख में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्‍थान (आईएआरआई) की आधारशिला रखी। इस अवसर पर एक विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने इस कार्य के लिए असम सरकार तथा वहां के मुख्‍यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल को बधाई दी।

 

उल्लेखनीय है कि देशभर में जिस तरह से आईआईटी और आईआईएम जैसी उच्च शिक्षा संस्थानों का जाल बिछा हुआ है, ठीक उसी तरह कृषि शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, दिल्ली की तर्ज पर देश में और कृषि अनुसंधान संस्थानों की स्थापना करने की योजना मोदी सरकार द्वारा बनाई गई है। इस क्रम में पहले झारखंड और अब असम में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की शुरूआत की जा रही है।

 

आईएआरआई की आधारशिला रखते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इससे भविष्‍य में पूरे क्षेत्र में एक सकारात्‍मक प्रभाव पड़ेगा। उन्‍होंने कहा कि 21वीं सदी की जरूरतों के साथ आज कृषि को विकसित करने की जरूरत है। प्रधानमंत्री ने कहा कि किसानों को बदलती तकनीकों का लाभ मिलना चाहिए।

प्रधानमंत्री ने आधुनिक कृषि और क्षेत्र की विशेष जरूरतों पर ध्‍यान केन्द्रित करने पर जोर दिया। प्रधानमंत्री ने 2022 तक, स्‍वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर किसानों की आय दोगुनी करने के अपने उद्देश्‍य पर भी बात की।

केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने गोगामुख, धेमाजी, असम में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद – भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, असम के शिलान्यास समारोह के अवसर पर लोगों को सम्बोधित किया।

कृषि मंत्री ने इस मौके पर कहा कि प्रधानमंत्री ने संकल्प लिया है कि वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करेंगे और हम ऐसा करके दिखाने के लिए दृढ़ संकल्प हैं। इसी क्रम में, देश के पूर्वोत्तर राज्यों में कृषि, एवं सम्बद्ध क्षेत्रों में उत्पादन को बढ़ाने की अपार संभावनाओं को देखते हुए कृषकों का ज्ञानवर्धन करने, उचित कृषि संबंधी जानकारी देने तथा देश में कृषि अनुसंधान तथा शिक्षा का उत्कृष्ट स्तर बनाये रखने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की एक और शाखा असम में खोली जा रही है।

उन्होंने कहा कि इस संस्थान की स्थापना कृषि उत्पादन व उत्पादकता बढ़ाने के साथ उच्च स्तरीय शिक्षा एवं अनुसंधान प्रदान करने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल है और आने वाले समय में देश के पूर्वोत्तर भाग में रहने वाले किसानों के जीवन स्तर में निश्चित तौर पर इससे बदलाव दिखाई पड़ेगा।