Jayendra Saraswathi

कांची कामकोटी पीठ के शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती नहीं रहे

Jayendra Saraswathi कांची  कामकोटी पीठ के  69 वें  शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती बुधवार, 28 फरवरी को तमिलनाडु के कांचापुरम में परलोक गमन कर गए। वह 82 वर्ष के थे और कांची मठ के 69 वें प्रधान थे।

उन्हें 3 जनवरी 1994 को शंकराचार्य की पदवी प्रदान कीगई थी और वे 28 फरवरी 2018 तक इस पर बने रहे।  वह 22 मार्च, 1954 में पहली बार छोटे शंकराचार्य नियुक्त कियं गए थे। दुनिया भर के हिन्दू समाज में कांचीपुरम मठ एक प्रमुख तीर्थस्थान माना जाता है।

जयेन्द्र सरस्वती की अंतिम क्रिया का टीवी फोटो । साभार आकाशवाणी

उनका जन्म तिरूवरूर के इरूल नेके गांव में 18 जुलाई, 1935 को हुआ था। उनका नाम सुब्रमण्यम रखा गया था किन्तु दीक्षा के बाद उन्हे जयेंद्र सरस्वती कहा जाने लगा। आदि शंकराचार्य द्वारा  8 वीं शताब्दी  में प्रस्थापित प्रतिष्ठित कांची मठ के प्रमुख थे।

उन्हें साँस लेने में तकलीफ की शिकायत के बाद अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर उनके संवेदना व्यक्त की है।

प्रधानमंत्री ने अपने ट्विटरर संदेश में कहा कि जगदगुरु पूज्य श्री जयेंद्र सरस्वती शंकराचार्य असंख्य समुदाय की सेवा पहलों में सबसे आगे थे। उन्होंने संस्थानों का विकास कियाए जिन्होंने गरीबों और दलितों के जीवन को बदल दिया।

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि कांची कामकोटी पीठ के 69वें मठप्रमुख के रूप में स्वामी जयेन्द्र सरस्वती ने भारत की आध्यात्मिक विरासत को समृद्ध करते हुए समाज मे सनातन हिन्दू धर्म और संस्कृति की गरिमा का उद्घोष कर लोकमानस को चेतना सम्पन्न बनाया। शंकराचार्य परमपूज्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती आज ब्रम्हलीन हो गए। सनातनधर्मी श्रद्धालुओं और सम्पूर्ण भारत के लिए यह दु:खद क्षण है।