राजनीतिक दल सामाजिक-आर्थिक न्याय पर मौन : न्यायमूर्ति केहर

नई दिल्ली, 8 अप्रैल | प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति जगदीश सिंह केहर ने शनिवार को कहा कि हालांकि राजनीतिक दल आर्थिक सुधार और वैश्वीकरण की बातें अपने घोषणापत्र में करते हैं, लेकिन वे एससी/एसटी और समाज के अन्य कमजोर वर्गों के लिए सामाजिक-आर्थिक न्याय के संवैधानिक लक्ष्य के साथ आर्थिक विकास की उपलब्धियों को कभी भी नहीं जोड़ते हैं। यह ध्यान दिलाते हुए कि अलग-अलग दलों के घोषणापत्र बिल्कुल एक जैसे हैं, केहर ने कहा कि समस्या उनके क्रियान्वयन में उत्पन्न होती है, जब पूंजी उत्पादन को अलग-अलग श्रेणियों में बांटा जाता है।

उन्होंने कहा कि संविधान में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में वर्णित सामाजिक-आर्थिक न्याय के लक्ष्य के साथ दलों के घोषणापत्र का कोई संबंध नहीं है।केहर ने कहा कि संवैधानिक मूल्यों के बारे में बात करना हमेशा आसान होता है और सबकुछ सार में बात करना अधिक आसान होता है। उन्होंने कहा कि सवाल ‘संवैधानिक साधनों के माध्यम से लोगों को अच्छा प्रशासन मुहैया कराने के लिए आर्थिक व्यवस्था कैसे संचालित करें’ इसका है। उन्होंने यह भी कहा कि आर्थिक विकास को आर्थिक न्याय और आर्थिक सद्भाव के साथ जोड़ना होगा।

केहर ने भारतीय उद्योग परिसंघ द्वारा आयोजित ‘चुनावी मुद्दे के संदर्भ में’ आर्थिक रिकवरी पर दो दिवसीय अखिल भारतीय संगोष्ठी के उद्घाटन के अवसर पर अपने संबोधन में यह विचार व्यक्त किए।

निर्वाचित प्रतिनिधियों की जवाबदेही सुनिश्चित करने का आह्वान करते राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि सभी राजनीतिक दलों को अपने कार्य के लिए स्वैच्छिक आचार संहिता विकसित करनी होगी। उन्होंने कहा कि 1957 और 1984 के दो आम चुनावों को छोड़कर बाकी किसी भी आम चुनाव में किसी भी पार्टी को 50 फीसदी से अधिक मत हासिल नहीं हुआ है। यहां तक कि 1984 में, राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को केवल 48.6 फीसदी मत मिले थे।

राष्ट्रपति ने एक स्वस्थ बहस का आह्वान करते हुए कहा कि संसद सिर्फ एक विचार-विमर्श करने वाला निकाय ही नहीं, बल्कि एक निर्णय लेने वाली संस्था भी है।