किसान आंदोलन

किसान आंदोलन, कृषि कानून, सरकार और समाधान……

 

किसान आंदोलन, गर्म खिचड़ी की तरह है और सरकार उसके ठंडा होने का इंतज़ार कर रही है। यही इस समय देश के हित में है और अर्थ व्यवस्था में सुधार के लिए जरूरी है। लेकिन कृषि कानूनों और किसानों की समस्याओं के समाधान तो सरकार को ही खोजने होंगे।

आईये पहले फौरी तौर पर हालात का जायजा लें।

कृषि कानूनों को लेकर आंदोलन कर रहे किसान संगठनों और सरकार के बीच किसी तरह का समझौता नहीं हो रहा है। एक तरफ किसान तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं और दूसरी ओर सरकार उनमें संशोधन के लिए तैयार है।

केंद्रीय कृषि मंत्री तोमर और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने  किसानों से वार्ता के लिए पुनः अपील की थी उसका कोई असर सामने दिखाई नहीं दे रहा है और किसान अपनी मांग पर अड़े हुए हैं।

फिर यह भी समझने की जरूरत है कि देश में जब अधिकांश किसान छोटी जोत वाले हैं तो कोई भी सरकार उनको कैसे नुकसान पहुंचा सकती है? किसान भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूत जड़ हैं और कृषि क्षेत्र का महत्वपूर्ण योगदान है।

याद रखने की बात यह भी है कि कोई भी खाद्य प्रसंस्करण करने वाली बड़ी कंपनी कभी भी किसी छोटे किसान के पास उसकी उपज को खरीदने के लिए नहीं जाना चाहेगी। उसे बड़े किसानों की जरूरत होगी क्योंकि प्रोडक्शन में अधिक उपज और कच्चे माल की जरूरत होती है। इसलिए छाटी जोत के किसानों को इस बात से डरना नहीं चाहिए कि काॅरपोरेट उनकी जमीनों को हड़पने लेंगे और उन्हें किसी तरह का नुकसान पहुंचेगा।

सरकार जब स्पष्ट कह रही है कि वह एमएसपी खत्म नहीं करेगी तो किसानों को इस बात पर भरोसा करना चाहिए। शताब्दियों से व्यवस्थाओं और नागरिकों के बीच का भरोसा ही विकास की राह को आसान बनाता रहा है।

अब एक नज़र कृषि क्षेत्र की समस्याओं पर डालते हैं। साफ है कि भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था लंबे समय से एक बुरे दौर में इसलिए चल रही है क्योंकि किसानों को उनकी उपज का पूरा मूल्य नहीं मिल रहा है।

किसान संगठनों की यही माँग है कि किसानों को उनके उपज की पूरी कीमत लाभ के साथ मिले।  दूसरी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से सम्बद्ध भारतीय किसान संघ का भी स्पष्ट रूप से कहना है कि देश के कई भागों में अवर्षण या अतिवृष्टी की समस्या बारबार निर्माण होती रहती है, जिससे किसानों का जीवन पूर्णतः बिखर जाता है। ऐसे में सरकारी अनास्था से किसानों की स्थिती और बिगड जाती है।

किसान आंदोलन

भारतीय किसान संघ की वेबसाइट पर व्यक्त विचार

किसान संघ के विचार को उनकी वेबसाइट पर पढ़ा जा सकता है जिसमें लिखा गया है हालाकि कृषि यह भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार है, परंतु देश के अर्थसंकल्प में यह बात प्रतिबिंबित होती दिखाई नहीं देती।  सरकार कृषि उत्पादों के लिए जो समर्थन मूल्य घोषित करती है, उससे भी किसानों का कभी लाभ होता दिखाई नहीं देता, यह एक विडंबना ही तो है।

किसान संघ का यह भी कहना है कि असंगठित होने के कारण किसानों का हरदम शोषण ही होता रहा है और यही कारण है कि किसान उनका गॉंव और खेती छोडकर शहरों की ओर जाने लगा है,  इस कारण शहरों में झुग्गी.झोपडियॉंए जनसंख्या में वृद्धि आदि नागरी समस्याएँ बढने लगीहै। इस प्रकार की सारी समस्याओं को दूर करने का भारतीय किसान संघ का प्रयास है।

भारतीय किसान संघ अन्य किसान हितैषी संगठनाओं के साथ भाईचारे के संबंध रखता है।  किसान.हित यही भारतीय किसान संघ का मुख्य उद्देश्य है और इसके लिये किसी भी संगठन के साथ मिलकर काम करने की उसकी तैयारी है।

इस समय हालात तनातनी के  हैं और ऐसी स्थिति में भारतीय किसान संघ के नेताओं को चाहिए कि वे अन्य किसान संगठनों से बातचीत करके कोई ऐसा रास्ता निकाले जिसमें किसानों का हित निहित हो।

किसान आंदोलन के संदर्भ में पूर्व न्यायाधीश मार्कंण्डेय काटजू का कहना है कि किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए किसान कमीशन बनाया जाना चाहिए। इससे समस्याओं के समाधान पर विचार विमर्श हो सके।

दूसरी ओर काटजू ने अपने ट्वीट में चिंता व्यक्त की है कि अगर किसान संगठन और सरकार टकराते रहे तो अशांति और हिंसा होगी उसके दुष्परिणाम लंबे समय तक सामने आते रहेंगे।

इन सभी संदर्भों में जरूरी है कि दोनों ओर से संयम बरतकर बातचीत जारी रखें।

किसान संगठन इस पर ध्यान दें कि सरकार किसी दूसरे देश की नहीं है। कोई भी सरकार अपनी जड़ों को नहीं काटेगी। दूसरी ओर बीते सालों की गलतियों के लिए वर्तमान सरकार को दोष नहीं दिया जा सकता।

सरकारों को भी हमेशा याद रखना चाहिए कि अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए देश की बड़ी जनसंख्या को यह अहसास कराना जरूरी है कि वह उसकी हितैषी नहीं तो कम से कम नुकसानदेह तो नहीं है। इसलिए कुछ समय के लिए बिलों को कोल्ड स्टोरेज में रख देना चाहिए।

सभी समझदारों और सत्तानशीनों के लिए यह ग्रामीण कहावत एक रास्ता दिखाती है कि खिचड़ी जब गर्म हो तो उसे किनारे से खाना ही बेहतर होता है।इसलिए सरकार को इस बात से बचना चाहिए कि वह तथाकथित सुधार की अंगुलियाँ आंदोलन की गर्म खिचड़ी के बीच में न डाले ।