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डीएसबीपीए ने केन्द्र सरकार से पुस्तक उद्योग की अड़चने दूर करने की माँग की

डाॅ. ओ एन चौबे एवं डाॅ. प्रदीप राय

डीएसबीपीए (DSBPA) द्वारा आयोजित सम्मेलन में  पुस्तक प्रकाशकों (Publishers) और वितरकों ने सरकार से मांग की है कि वह भारतीय पुस्तक उद्योग (Indian book industry ) की अड़चनों को दूर करे तथा विदेशों से आयात (Import) की जाने वाली पुस्तकों से शुल्क (duty)  हटाये।

नई दिल्ली में शनिवार, 21 सितंबर, 2019 को संपन्न हुई दिल्ली स्टेट बुकसेलर्स एण्ड पब्लिशर्स एसोसिएशन (Delhi State Booksellers’ and Publishers’ Association) के 69वें वार्षिक सम्मेलन (69th Annual General Meeting) में प्रकाशकों (Publishers) ने कागज की बढ़ती हुई कीमतों (paper prices ) तथा शिक्षण संस्थानों  के पुस्तकालयों (libraries) में पुस्तकों की खरीद के सिकुड़ते बजट ( shrinking budgets) पर भी चिन्ता जाहिर की।

वार्षिक सम्मेलन में चार सौ से ज्यादा पुस्तक प्रकाशकों (Publishers)  एवं वितरकों ने भाग लिया।

कार्तिक राज कुशवाह

सम्मेलन के शुरू में एसोसिएशन के अध्यक्ष परमिल मित्तल (Parmil Mittal) ने अपने वक्तव्य में कहा कि ऑनलाइन खुदरा विक्रेताओं द्वारा दी जाने वाली छूट की बाढ़ के साथ अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा के कारण आज देश भर के पुस्तक विक्रेताओं को भी कठिन समय का सामना ( facing hard time)  करना पड़ रहा है।

मित्तल अस्वस्थता के कारण सम्मेलन में शामिल नहीं हो सके किन्तु उपाध्यक्ष हिमांशु चावला (Himanshu Chawla) ने उनके स्वागत भाषण को पढ़ा।

उन्होंने कहा कि भारतीय पुस्तक उद्योग (Indian book Industry) की सबसे बड़ी अड़चन वितरण है। केवल कुछ बुकसेलर्स ही अपना कारोबार खुदरा बिक्री के माध्यम से करते हैं। भारतीय पुस्तक उद्योग की वृद्धि काफी हद तक विश्वविद्यालय और महाविद्यालयों के पुस्तकालयों में वृद्धि के कारण हुई है, जो शोधपूर्ण एवं अकादमिक पुस्तकों के लिए एक सीमित बाजार है।

उन्होंने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था में हुए बदलावों ने सभी को प्रभावित किया, और हमारा उद्योग कोई अपवाद नहीं है। भारतीय मुद्रा के हालिया पुनर्मूल्यांकन के परिणामस्वरूप प्रभावी पुस्तकालय बजट सिकुड़ गए हैं क्योंकि वे कम संख्या में पुस्तकें खरीद रहे हैं।

मुद्रास्फीति (inflation) प्रकाशन के सभी तत्वों को प्रभावित कर रही है, लेकिन कागज की कीमतों में भारी बढ़ोतरी प्रकाशकों (Publishers) के लिए एक समस्या बनी हुई है। पहले यह जीएसटी था और अब किताबों के आयात पर शुल्क लगाया जा रहा है। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित वे पाठक होंगे जिनके पास अकादमिक पुस्तकों के कम विकल्प होंगे।

मित्तल का कहना था कि साक्षरता दर में सकारात्मक वृद्धि देखी जा रही है। यह हमारी आबादी का दो तिहाई से अधिक हिस्सा  है और यह ज्ञान और पुस्तकों के प्रसार में तब्दील होना चाहिए, लेकिन एक सर्वेक्षण के अनुसार  केवल एक चौथाई हमारे युवाओं को अनिवार्य पाठ्य पुस्तकों के अलावा किताबें पढ़ना (book reading) पसंद है।

डॉ. प्रदीप राय

सम्मेलन में मुख्य अतिथि पद से बोलते हुए इंडियन लाइब्रेरी एसोसिएशन (Indian Library Association) के उपाध्यक्ष डॉ. प्रदीप राय (Dr. Pradeep Rai) ने कहा कि भारतीय समाज में पढ़ने की आदत (reading habits) कमजोर हो रही है जो चिंताजनक है।

उन्होंने कहा कि नई तकनीक के कारण बहुत सारे बदलाव आ रहे हैं और पुसतकालय भी इसके साथ बदल रहे हैं ताकि पाठकों की रुचि बनी रहे।

डाॅ राय ने कहा कि यह ज्ञान के प्रलय का समय है। कई प्रकार के डिवाइसेज आ गए हैं और सभी को साथ लेकर चलना और संभालना कठिन हो रहा है।

उन्होंने कहा कि तकनीक के कारण यह एक चुनौती है और एक प्रकार से संक्रांति काल है और इसमें कई तरह के खतरे हैं। ऐसे समय में प्रकाशकों (Publishers) से अच्छे कंटेंट वाली पुस्तकों की अपेक्षा जिससे लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाई जासके।

राॅय ने इस बात पर भी जोर दिया कि प्रकाशकों (Publishers) को अपने एथिक्स (Ethics) पर काम करना चाहिए, इससे बहुत सारी समस्याएं अपने आप दूर होंगी।

डाॅ ओ एन चौबे

सम्मानीय अतिथि के रूप में बोलते हुए इण्डियन लाइब्रेरी एसोसिएशन के महासचिव डाॅ ओ एन चौबे ने कहा कि प्रकाशक और लाइब्रेरी संगठन मिलकर ही पुस्तक व्यवसाय की दशा और दिशा बदल सकते हैं।

उन्होंने भी प्रकाशन व्यवसाय में प्रोफेशनल एथिक्स की आवश्यकता पर पर जोर देते हुए कहा कि दोनों संगठन इस विषय पर मिलकर चर्चा कर सकते हैं।

कार्तिक राज कुशवाहा

दिल्ली स्टेट बुकसेलर्स एण्ड पब्लिशर्स एसोसिएशन (DSBPA) के सचिव कार्तिक राज कुशवाह (Kartik Raj Kushvah) ने कार्यवाही का संचालन करते हुए कहा कि यह एक सकारात्मक मंच है और प्रकाशकों (Publishers) की समस्याओं का हर संभव सहयोग करने को तत्पर है।