बुंदेलखंड में चुनाव पार्टी नहीं, उम्मीदवार पर निर्भर !

झांसी, 30 जनवरी | उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में 2017 का विधानसभा चुनाव ऐसा चुनाव होगा, जो पार्टी के आधार पर नहीं बल्कि उम्मीदवार की सक्रियता, जनता के बीच पैठ, जातीय समीकरण और छवि के चलते जीता जा सकेगा, क्योंकि यहां किसी दल के पक्ष या विपक्ष में कोई माहौल नहीं है।

उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के सात जिलों में 19 सीटें हैं। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव पर नजर दौड़ाई जाए तो एक बात साफ हो जाती है कि यहां बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और समाजवादी में बराबरी का मुकाबला था। बसपा ने जहां सात सीटों पर कब्जा जमाया था, वहीं समाजवादी पार्टी के खाते में कुल छह सीटें आई थीं। इसके अलावा कांग्रेस चार और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को दो सीटें मिली थीं। उसके बाद एक उपचुनाव में सपा ने चरखारी सीट भाजपा से छीन ली थी।

इस बार के चुनाव की तस्वीर पिछले चुनाव से जुदा है, क्योंकि सपा और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। 19 सीटों में जो बंटवारा हुआ है, उसमें आठ सीटें कांग्रेस और 11 सीटें सपा के हिस्से में आई हैं।

वरिष्ठ पत्रकार अरविंद शर्मा का मानना है कि इस बार का चुनाव विशुद्ध तौर पर उम्मीदवार आधारित चुनाव है, क्योंकि न तो किसी दल के पक्ष में माहौल है और न ही विरोध में। इस तरह उम्मीदवार की छवि अहम होने वाली है तो दूसरी ओर उसका जातीय वोट बैंक हार-जीत में बड़ी भूमिका निभा सकता है।

सपा और कांग्रेस को पिछले चुनाव में मिली कुल सीटों को जोड़ दिया जाए तो वह 11 सीटें (उपचुनाव सहित) हो जाती है। इस बार गठबंधन से नतीजों में कितना बदलाव आएगा, इस पर शर्मा का कहना है कि यह तो होने वाला नहीं है कि गठबंधन को उतनी सीटें मिल जाएं, जितनी दोनों की अलग-अलग लड़ने पर मिली थी, फिर भी चुनाव रोचक रहने वाला है।

बुंदेलखंड में 23 फरवरी को मतदान होना है। नामांकन छह फरवरी तक भरे जाना है। अभी यहां चुनावी रंग कहीं भी नजर नहीं आ रहा है। युवा कारोबारी ललित मिश्रा का कहना है कि इस बार के चुनाव में हार-जीत का आकलन करना किसी भी राजनीतिक पंडित के लिए आसान नहीं है, ऐसा इसलिए क्योंकि न तो अखिलेश सरकार के प्रति ‘एंटी इन्कम्बेंसी’ है और न ही नोटबंदी से भाजपा के खिलाफ असंतोष। लिहाजा, यह चुनाव पूरी तरह उम्मीदवार पर निर्भर करने वाला है।

बुंदेलखंड में सपा-कांग्रेस के गठबंधन के चलते इस बार त्रिकोणीय मुकाबला होना तय है, क्योंकि यहां अन्य कोई क्षेत्रीय दल सक्रिय नहीं है। पिछले चुनाव में तो यहां चतुष्कोणीय मुकाबला था। मतदान की तारीख करीब आने के साथ तस्वीर भी उजली होने लगेगी, मगर फिलहाल तो न चुनावी रंग है और न ही मतदाताओं में चुनाव को लेकर कोई उत्साह।

— संदीप पौराणिक