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रेल्वे को सीएनजी इस्‍तेमाल करने पर गोल्‍डेन पीपॉक पुरस्‍कार

नई दिल्ली, 10 जुलाई (जनसमा)। भारतीय रेल संगठन- वैकल्‍पिक ईंधन (आईआरओएफ) को डेमू सवारी रेलों में जैव ईंधन (डीजल) के स्‍थान पर सीएनजी इस्‍तेमाल करने के लिए 2017 के गोल्‍डेन पीपॉक पुरस्‍कार (पर्यावरण नवाचार) प्रदान किया गया।

विश्‍व में सवारी रेलों में सीएनजी का पहली बार इस्‍तेमाल किया गया है। डेमू रेलों में पर्यावरण अनुकूल 1400 एचपी वाले द्वैध ईंधन डीजल ईंजन का विकास आईआरओएफ ने किया है, जिसमें डीजल के स्‍थान पर सीएनजी के उपयोग से डीजल की खपत में 20 प्रतिशत की कमी आई है। इस नए प्रयोग से एनओएस में 16 प्रतिशत, कार्बन इाइऑक्‍साइड में 6 प्रतिशत और सूक्ष्‍म कण में 18 प्रतिशत की कमी आई है। इसके साथ ईंधन का खर्च भी 8 प्रतिशत कम हुआ है। अब तक डेमू के 19 ईंजन सीएनजी आधरित द्वैध ईंधन में सफलतापूर्वक परिवर्तित किए जा चुके हैं।

रेल मंत्री सुरेश प्रभाकर प्रभु ने आईआरओएफ के सदस्‍यों को इस उपलब्‍धि के लिए बधाई दी है। उन्‍होंने कहा कि स्‍वच्‍छ ईंधन आज की जरूरत है। भारतीय रेल गैस उत्‍सर्जन में कमी लाने के लिए हरसंभव प्रयास करेगा।

इंस्‍टीट्यूट आफॅ डायरेक्‍टर्स (आईओडी) ने 1991 में गोल्‍डेन पीपॉक पुरस्‍कार की स्‍थापना की। पूरे विश्‍व में यह पुरस्‍कार कॉरपोरेट विशिष्‍ठ उपलब्‍धि के लिए जाना जाता है। अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर के मानदंडों के संदर्भ में इस पुरस्‍कार को पारदर्शिता और निष्‍पक्षता की विश्‍वसनीयता प्राप्‍त है।

वर्तमान तकनीक के अंतर्गत सीएनजी द्वारा 20 प्रतिशत डीजल का प्रतिस्‍थापन किया जाता है। यदि भारतीय रेल के सभी डीजल ईंधनों में यह लागू कर दिया जाता है तो यह प्रौद्योगिकी 1360 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष बचा सकती है। आईआरओएफ 40 प्रतिशत डीजल ईंधन के प्रतिस्‍थापन की तकनीक विकसित करने के लिए प्रयासरत है। इससे 3400 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष बचाए जा सकेंगे। इस तकनीक से पर्यावरण को भी सुरक्षा प्राप्‍त हो सकेगी।